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මැවුම්කරුගේ පැවැත්ම පිළිබඳ සාධක මොනවාද?

सृष्टिकर्ता पर ईमान इस वास्तविकता पर आधारित है कि चीज़ें बिना कारण के प्रकट नहीं होतीं। आपको बस इतना बता देना काफ़ी है कि विशाल भौतिक ब्रह्मांड और उसमें रहने वाले जीव एक अमूर्त चेतना रखते हैं और सारहीन गणित के नियमों का पालन करते हैं। एक सीमित भौतिक ब्रह्मांड के अस्तित्व की व्याख्या करने के लिए भी हमें एक स्वतंत्र, सारहीन और शाश्वत स्रोत की आवश्यकता है।

आकस्मिकता स्वयं ब्रह्मांड का निर्माण नहीं कर सकती है, इसलिए कि वह मुख्य कारण नहीं है। बल्कि वह द्वितीयक परिणाम है, जो अन्य कारकों (युग, स्थान, पदार्थ एवं उर्जा) की उपलब्धता पर निर्भर करता है, ताकि इन कारकों से मिलकर कोई चीज़ अचानक अस्तित्व में आए। अतः संयोग (आकस्मिकता) शब्द का प्रयोग किसी चीज़ की व्याख्या के लिए नहीं किया जा सकता है, क्योंकि आकस्मिकता कोई भी वस्तु नहीं है।

उदाहरण स्वरूप, यदि कोई व्यक्ति अपने कमरे में प्रवेश करे और खिड़की का काँच टूटा हुआ पाकर अपने घर वालों से प्रश्न करे कि किसने खिड़की का काँच तोड़ा और वे उसको उत्तर दें कि अचनानक टूट गया है, तो यह उत्तर ग़लत होगा। इसलिए कि उसने यह नहीं पूछा था कि खिड़की का काँच कैसे टूटा, बल्कि उसने यह पूछा था कि तोड़ा किसने है? आकस्मिता क्रिया का विषेशण है, न कि कर्ता। सही उत्तर यह होगा कि वह कहें कि इसको अमुक ने तोड़ा है। फिर बयान करें कि उसने इसे जानबूझ कर तोड़ा है अचनानक टूट गया है। यह बात ब्रह्मांड और सृष्टियों पर पूरे तौर पर लागू होती है।

यदि हम प्रश्न करें कि किसने ब्रह्मांड और सृष्टियों को बनाया और कोई उत्तर दे कि यह अचानक वजूद में आ गये, तो यह उत्तर ग़लत होगा। इसलिए कि हमने यह प्रश्न नहीं किया है कि ब्रह्मांड वजूद में कैसे आया, बल्कि हमने यह पूछा है कि किसने ब्रह्मांड को पैदा किया है। संयोग (आकस्मिता) कोई कर्ता नहीं है और न वह ब्रह्मांड का सृष्टिकर्ता है।

यहाँ प्रश्न उठता है कि क्या ब्रह्मांड के सृष्टिकर्ता ने उसे संयोग से बना दिया है या मक़सद के तहत बनाया है? बेशक, कार्य और उसके परिणाम ही हमें इसका जवाब दे सकते हैं।

यदि हम खिड़की के उदाहरण की ओर लौटें और यह मानें कि एक व्यक्ति अपने कमरे में प्रवेश करता है और खिड़की का काँच टूटा हुआ पाता है, तो अपने घर वालों से प्रश्न करता है कि किसने खिड़की का काँच तोड़ा और वे उसको उत्तर देते हैं कि अमुक ने इसे संयोग से तोड़ दिया। तो यह उत्तर स्वीकार्य एवं सही है, इसलिए कि काँच का टूटना बिना योजना के होने वाला काम है और हो सकता है कि अचानक या संयोग से टूट जाए। परन्तु यदि वही व्यक्ति दूसरे दिन अपने कमरे में प्रवेश करे, और पाए कि खिड़की के काँच की मरम्मत हो चुकी है, और वह अपने घर वाले से उसके बारे पूछे, और वे उसको उत्तर दें कि अनुक ने उसको अचानक ठीक कर दिया, तो यह उत्तर अस्वीकार्य होगा, बल्कि तार्किक तौर पर असंभव होगा, क्योंकि काँच की मरम्मत का काम कोई बिना योजना के होने वाला काम नहीं है। बल्कि यह एक व्यवस्थित क्रिया है, पहले टूटे हुए काँच को हटाना होगा, खिड़की के फ्रेम को साफ़ करना होगा, फिर फ्रेम के नाप से नए काँच को ठीक से काटना होगा, फिर नए काटे हुए काँच को रबर से फ्रेम में सेट करना होगा, फिर फ्रेम को उसके स्थान पर सेट करना होगा। यह तमाम काम अचानक से नहीं हो सकते हैं, बल्कि इच्छा से होंगे। तार्किक नियम कहता है कि यदि काम किसी व्यवस्था के तहत नहीं, बल्कि बिना योजना के होने वाला हो, तो वह अचानक हो सकता है। लेकिन जहाँ तक समन्वित एवं संगठित क्रिया की बात है, या ऐसा काम जो किसी व्यवस्था के तहत हुआ हो, तो वह अचानक नहीं हो सकता है, बल्कि वह इरादे के साथ होता है।

जब हम ब्रह्मांड और प्राणियों पर नज़र दौड़ाते हैं तो हम पाते हैं कि यह सुदृढ़ व्यवस्था के तहत बनाए गए हैं, जैसा कि यह सटीक नियमों के अधीन होकर संचालित होते हैं। इसलिए हम कहते हैं कि यह तार्किक तौर पर असंभव है कि ब्रह्मांड और प्राणियों का निर्मान अचानक या संयोग से हो गया हो, बल्कि यह सब कुछ एक इरादे के तहत पैदा किए गए हैं। इस प्रकार सृष्टि की रचना के प्रश्न से संयोग बिलकुल बाहर हो जाता है। [10] चैनल यक़ीन, नास्तिकता और अधर्म की आलोचना https://www.youtube.com/watch?v=HHASgETgqxI

एक सृष्टिकर्ता के अस्तित्व के कुछ प्रमाण इस प्रकार हैं :

1- सृष्टि करना एवं अस्तित्व में लाना :

अर्थात ब्रह्मांड को अनस्तित्व से अस्ततित्व प्रदान करना एक पूज्य सृष्टिकर्ता के अस्तित्व को प्रमाणित करता है।

"वस्तुतः आकाशों तथा धरती की रचना और रात तथा दिन के एक के पश्चात् एक आते-जाते रहने में, बुद्धिमानों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं।" 2- अनिवार्य होना :

सूरा आल-ए-इमरान : 190]

यदि हम कहें कि हर वस्तु का एक स्रोत है, और उस स्रोत का एक स्रोत है, और यह सिलसिला लगातार चलता रहे, तो तर्क यह कहता है कि हम किसी आरंभ या अंत तक पहुँचें। यह ज़रूरी है कि हम एक ऐसे स्रोत तक पहुँचें, जिसका कोई स्रोत न हो, जिसको हम ''मूल कारण'' के नाम से जानते हैं, जो मूल घटना से अलग एक चीज़ है। उदाहरण के तौर पर, जब हम महाविस्फोट को मूल घटना मान लें, तो सृष्टिकर्ता वह मूल साधन उत्पन्न करने वाला है, जिसने इस घटना को अंजाम दिया।

3- सुदृढ़ तथा व्यवस्थित बनाना :

अर्थात ब्रह्मांड का सूक्ष्म निर्माण तथा उसके सटीक नियम एक पूज्य सृष्टिकर्ता के अस्तित्व का प्रमाण हैं।

''जिसने ऊपर-तले सात आकाश बनाए। तुम अत्यंत दयावान् की रचना में कोई असंगति नहीं देखोगे। फिर पुनः देखो, क्या तुम्हें कोई दरार दिखाई देता है?" [12] "निःसंदेह हमने प्रत्येक वस्तु को एक अनुमान के साथ पैदा किया है।" [13]

[सूरा अल-मुल्क : 3] 4- ध्यान रखना :

[सूरा अल-क़मर : 49]

ब्रह्मांड का निर्माण कुछ इस तरह किया गया है कि वह मानव जीवन के लिए बिल्कुल मुनासिब हो और यह सब अल्लाह की सुन्दरता एवं रहमत के गुणों को दर्शाता है।

"अल्लाह वह है, जिसने आकाशों तथा धरती को पैदा किया, और आकाश से कुछ पानी उतारा, फिर उसके द्वारा तुम्हारे लिए फलों में से कुछ जीविका निकाली, और तुम्हारे लिए नौकाओं को वशीभूत कर दिया, ताकि वे सागर में उसके आदेश से चलें और तुम्हारे लिए नदियों को वशीभूत कर दिया।'' [14] 5- वशीभूत तथा प्रबंध करना :

[सूरा इब्राहीम : 32]

यह अल्लाह के प्रताप तथा असीम शक्ति के गुणों से संबंधित है।

''तथा उसने चौपायों को पैदा किया, जिनमें तुम्हारे लिए गर्मी प्राप्त करने का सामान और बहुत-से लाभ हैं और उन्हीं में से तुम खाते हो। तथा उनमें तुम्हारे लिए एक सौंदर्य है, जब तुम शाम को चराकर लाते हो और जब सुबह चराने को ले जाते हो। और वे तुम्हारे बोझ, उस नगर तक लादकर ले जाते हैं, जहाँ तक तुम बिना कठोर परिश्रम के कभी पहुँचने वाले न थे। निःसंदेह तुम्हारा पालनहार अति करुणामय, अत्यंत दयावान् है। तथा घोड़े, खच्चर और गधे पैदा किए, ताकि तुम उनपर सवार हो और शोभा के लिए। तथा वह (अल्लाह) ऐसी चीज़ें पैदा करता है, जो तुम नहीं जानते।'' [15] 6- ख़ास करना :

[सूरा अल-नह्ल : 5-8]

इसका मतलब है कि हम ब्रह्मांड में जो भी चीज़ देखते हैं, उसके कई रूप हो सकते थे, परन्तु अल्लाह ने उसके लिए उन रूपों में से सबसे उत्तम रूप को चुना है।

''फिर तुमने उस पानी के बारे में विचार किया, जिसे तुम पीते हो? क्या तुमने उसे बादल से बरसाया है अथवा हम उसे बरसाने वाले हैं? यदि हम चाहें तो उसे खारा कर दें, फिर तुम आभार व्यक्त क्यों नहीं करते?'' [16] ''क्या आपने अपने पालनहार को नहीं देखा कि वह किस प्रकार छाया को फैलाता है? यदि वह चाहता, तो उसे स्थिर बना देता। फिर हमने सूर्य को उस छाया की निशानी बना दी।'' [17]

[सूरा अल-वाक़िया : 68-70] क़ुरआन यह समझाने के लिए कई संभावनाओं का उल्लेख करता है कि ब्रह्मांड कैसे बना और कैसे अस्तित्व में आया। [18]

[सूरा अल-फ़ुरक़ान : 45] [सूरा अल-तूर : 35-37]

"क्या यह लोग बिना किसी पैदा करने वाले के स्वयं पैदा हो गए हैं या यह स्वयं पैदा करने वाले हैं? या इन्होंने ही पैदा किया है आकाशों तथा धरती को? वास्तव में, ये विश्वास ही नहीं रखते हैं। या फिर इनके पास आपके पालनहार के ख़ज़ाने हैं या यही (उसके) अधिकारी हैं?'' [19] क्या यह लोग बिना किसी पैदा करने वाले के स्वयं पैदा हो गए हैं? :

The Divine Reality: God, Islam & The Mirage of Atheism. Hamza Andreas Tzortzi

यह परिकल्पना कि ब्रह्मांड का कोई निर्माता नहीं है, कई प्राकृतिक नियमों के विरूद्ध है, जो हम अपने आस-पास देखते हैं। एक साधारण-सा उदाहरण, जैसा कि हम कहें कि मिस्र के पिरामिड ऐसे ही अस्तित्व में आ गए हैं, इस संभावना का खंडन करने के लिए पर्याप्त है।

या यह स्वयं पैदा करने वाले हैं? :

अपने आपको पैदा करना : क्या ब्रह्मांड अपने आपको पैदा कर सकता है? खुद ''सृष्टि'' शब्द ऐसी चीज़ को इंगित करता है, जो पहले नहीं थी और फिर अस्तित्व में आई। अपने आपको पैदा करना तार्किक और व्यावहारिक रूप से असंभव है। यह इस वास्तविकता पर आधारित है कि अपने आपको पैदा करने का अर्थ यह है कि कोई चीज़ एक ही समय में मौजूद थी भी और नहीं भी। ज़ाहिर-सी बात है कि ऐसा होना असंभव है। यह कहना कि मनुष्य ने अपने आपको पैदा किया है, इसका अर्थ है कि वह अस्तित्व में आने से पहले भी मौजूद था।

यहाँ तक कि जब कुछ संशयवादी बात करते हैं और एकल-कोशिका वाले जीवों में आत्म-निर्माण की संभावना पर जोर देते हैं, तो इस चर्चा को शुरू करने के लिए पहले यह मान लेना पड़ेगा कि पहली कोशिका पहले से मौजूद रही है। फिर, यदि हम इस बात को मान लें, तो यह आत्म-निर्माण नहीं है, बल्कि यह एक प्रजनन विधि (अलैंगिक प्रजनन) है, जिससे एक ही जीव से वंश उत्पन्न होता है और उसे केवल उसी पिता की आनुवंशिक सामग्री विरासत में मिलती है।

जब आप लोगों से प्रश्न करेंगे कि आपको किसने पैदा किया है, तो बहुत-से लोग यह सादा-सा उत्तर दे देंगे कि मेरे माता-पिता मेरे इस दुनिया में आने के मूल कारण हैं। यह स्पष्ट है कि यह संक्षिप्त उत्तर है और इस गुत्थी को सुलझाने से बाहर निकलने का रास्ता खोजने का प्रयास मात्र है। स्वाभाविक तौर पर मनुष्य गहरा मंथन करना नहीं चाहता और न इसकी कोशिश करता है। वह जानता है कि उसके माँ-बाप मर जाएंगे और वह ज़िंदा रहेगा। फिर उसके बाद उसके बच्चे आएँगे, जो यही उत्तर देंगे। वह अच्छी तरह जानता है कि उनके बच्चों को पैदा करने में उसका कोई हाथ नहीं है। अतः वास्तविक प्रश्न यह है कि किसने मानव जाति को पैदा किया?

या उन्होंने ही आकाशों तथा धरती को पैदा किया है? :

यह दावा कि उसी ने आकाशों एवं धरती को पैदा किया है, उस सर्वशक्तिमान अल्लाह के सिवा किसी ने नहीं किया है, जिसने मानव जाति की ओर अपने रसूलों को भेजकर इस वास्तविकता से परदा उठाया है। सत्य तो यह है कि वही सृष्टिकर्ता, अस्तित्व प्रदान करने वाला और आकाशों तथा धरती एवं उनके बीच की सारी चीज़ों का मालिक है। उसका कोई साझी नहीं है और न ही कोई बच्चा।

''आप कह दें : उन्हें पुकारो जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा (पूज्य) समझते हो। वह कण बराबर भी अधिकार नहीं रखते, न आकाशों में और न धरती में तथा उनका उन दोनों में कोई भाग नहीं है और उस अल्लाह का उनमें से कोई सहायक नहीं है।'' [20] [सूरा सबा : 22]

यहाँ एक उदाहरण देख सकते हैं कि यदि किसी सार्वजनिक स्थल में कोई बैग पड़ा मिले और कोई व्यक्ति उसका दावा न करे, केवल एक व्यक्ति सामने आए और बैग तथा उसके अंदर जो कुछ है, उसकी तफ़सील यह प्रमाणित करने के लिए बताए कि बैग उसी का है, तो यह बैग उसी का माना जाएगा, जब तक कोई दूसरा दावेदार सामने न आए। यह इनसानी क़ानूनों के अनुसार है।

सृष्टिकर्ता का अस्तित्व :

यह तमाम बातें हमें एक ही उत्तर की ओर ले जाती हैं, जिससे भागना संभव नहीं है। वह यह है कि सृष्टिकर्ता का वजूद है। आश्चर्य है कि मनुष्य इस संभावना से दूर हमेशा बहुत सारी संभावनाओं को गढ़ता है। गोया कि यह एक काल्पनिक संभावना हो, जिसको सच मानना मुम्किन न हो और न उसकी सच्चाई का पता लगाया जा सकता हो। अगर हम निष्पक्षता और सच्चाई के साथ विचार करें और एक गहरी वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो इस हक़ीक़त तक पहुँच जाएँगे कि पूज्य सृष्टिकर्ता के बारे में सब कुछ समझ पाना संभव नहीं है। क्योंकि उसी ने पूरे ब्रह्माण्ड को पैदा किया है, इसलिए यह ज़रूरी है कि वह इन्सानी सोच से ऊपर हो। यह मानना तर्कसंगत है कि इस अदृश्य शक्ति के अस्तित्व तक पहुँचना आसान नहीं है, इसलिए ज़रूरी है कि यह शक्ति स्वयं अपने बारे इस तरह से बताए कि मानव दिमाग़ की समझ में आ जाए। इसी तरह मनुष्य के लिए भी ज़रूरी है कि वह यक़ीन करे कि यह अदृश्य शक्ति वास्तविक है, मौजूद है और इस अंतिम संभावना पर यक़ीन से भागना संभव नहीं है, जो इस कायनात के राज़ की शेष व्याख्या है।

''अतः अल्लाह की ओर दौड़ो। निश्चय ही मैं तुम्हारे लिए उसकी ओर से स्पष्ट सचेतकर्ता हूँ।'' [21] यदि हम हमेशा रहने वाला जीवन, नेमत और भलाई चाहते हैं, तो हमारे लिए इस माबूद, सृष्टिकर्ता और पैदा करने वाले पर ईमान लाना एवं उसे मानना ज़रूरी है।

[सूरा अल-ज़ारियात : 50]

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